श्री भगवान कहतेहैं- प्रिये ! जनस्थान में एक जड़ नामक ब्राह्मण था, जो कौशिक वंि में उत्पन्न हुआ
था । उसने अपना जातीय धमम छोड़कर बननये की वत्ृत्त में मन लगाया । उसे परायी त्स्ियों के साथ
व्यशिचार करने का व्यसन पड़ गया था । वह सदा जुआ खेलता, िराब पीता और शिकार खेलकर जीवों
की हहंसा ककया करता था । इसी िकार उसका समय बीतता था । धन नष्ट हो जाने पर वह व्यापार के
शलए बहुत दरू उत्तर हदिा में चला गया । वहााँसे धन कमाकर घर की ओर लौटा । बहुत दरू तक का
रास्ता उसने तय कर शलया था । एक हदन सूयामस्त हो जाने पर जब दसों हदिाओं में अन्धकार फैल
गया, तब एक वक्षृ के नीचे उसे लुटेरों ने धर दबाया और िीघ्र ही उसके िाण ले शलए । उसके धमम का
लोप हो गया था, इसशलए वह बड़ा ियानक िेत हुआ ।

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