श्रीभगवान कहते हैं- प्रिये ! अब मैंचौथे अध्याय का माहात्म्य बतलाता ह ूँ, सुनो | भागीरथी के तट पर
वाराणसी(बनारस) नाम की एक पुरी है | वहाूँ प्रवश्वनाथजी के मन्दिर में भरत नाम के एक योगननष्ठ
महात्ममा रहते थे, जो िनतदिन आत्ममचचदतन में तत्मपर हो आिरप वकव गीता के चतुथव अध्याय का पाठ
ककया करते थे | उसके अभ्यास से उनका अदतःकरण ननमवल हो गया था | वे शीत-उष्ण आदि द्वदद्वों
से कभी व्यचथत नहीीं होते थे |
एक समय की बात है | 

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